History of kumbhalgarh fort | कुम्भलगढ़ किले का इतिहास
History of Kumbhalgarh fort | कुम्भलगढ़ किले का इतिहास | कुम्भलगढ़ किले के बारे में रोचक तथ्य
यह बात तो सभी जानते हैं कि दुनिया के सात अजूबे में चाइना की “द ग्रेट वॉल ऑफ चाइना“ दीवार को भी शामिल किया गया है. पर क्या आपको पता है कि चीन की तरह ही भारत में भी एक बहुत लंबी और बड़ी दीवार है जो पूरी दुनिया की दूसरे नंबर की सबसे बड़ी दीवार हे. तो आज इस पोस्ट में में आपको इस दीवार के बारे में विस्तार से बताने वाला हु.
History of kumbhalgarh fort | कुम्भलगढ़ किले का इतिहास पोस्ट की खास बातें:-
1. यह दीवार राजस्थान के मेवाड़ के कुंभलगढ़ फोर्ट में हे.
2. इसका निर्माण महाराणा कुम्भा ने करवाया था.
3. इस दीवार को बनने में 15 साल लगे थे.
4. इसके निर्माण के लिए संत ने दी थी अपनी बलि.
5. महाराणा प्रताप की थी जन्म भूमि.
चलिए जानते हे विस्तार से:
· इस दीवार के इतहास की शुरुआत राजस्थान के कुंभलगढ़ दुर्ग में हुई थी और यह किला राजस्थान के राजसमन्द जिले में स्थित है.
· कुम्भलगढ़ उदयपुर से रोड वाले रास्ते से 82 किलोमीटरदूर है
· इस किले का निर्माण राणा कुंभा ने कराया था.
· इसके निर्माण में 15 साल लगे थे.
· यह 1100 मीटरकी ऊंचाई पर स्थित है और 36 किलोमीटर लंबी है.
· इस दीवार की चौड़ाई 15 फीट है और इस पर एक साथ दस घोड़े दौड़ सकते हैं.
· इस किले को ‘अजेयगढ‘ कहा जाता था क्योंकि इस किले पर विजय प्राप्त करना बहुत ही मुस्किल कार्य था
· इस किले पर प्रवेश द्वार, प्राचीर, जलाशय, बाहर जाने के लिए संकटकालीन द्वार, महल, मंदिर, आवासीय इमारतें, यज्ञ वेदी, स्तम्भ, छत्रियां आदि बने है.
· यह किला सात विशाल द्वारों और मजबूत प्राचीरों से सुरक्षित है. इसके ऊपरी भाग में बादल महल है और कुम्भा महल सबसे ऊपर है.
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Maharana Pratap |
· कुम्भलगढ़ महान शासक महाराणा प्रताप की जन्मभूमि भी है.
· महाराणा प्रताप मेवाड़ के महान शासक और वीर योद्धा थे. जिनका 19 वी शताब्दी तक किले पर कब्ज़ा था, लेकिन आज यह किला सामान्य लोगो के लिये भी खुला है.
· राणा कुंभा से लेकर महाराणा राज सिंह के समय तक मेवाड़ पर हुए आक्रमणों के समय राजपरिवार इसी किले में रहा करते थे और यहीं पर पृथ्वीराज और महाराणा सांगा का बचपन बीता था.
· इस किले ने बहुत बार राजपरिवार की रक्षा की हे.
· इस किले के अंदर 360 से ज्यादा मंदिर हैं जिनमे से 300 प्राचीन जैन मंदिर तथा बाकी हिन्दू मंदिर हैं.
दीवार के लिए संत ने दी थी बलि:
· 1443 में राणा कुम्भा ने इसका निर्माण शुरू करवाया पर निर्माण कार्य आगे नहीं बढ़ पा रहा था और निर्माण कार्य में बहुत अड़चनें आने लगी थी.
· राजा इस बात पर चिंतित हो गए और एक संत को बुलाया तब संत ने बताया की यह काम तभी आगे बढ़ेगा जब स्वेच्छा से कोई मानव बलि के लिए खुद को प्रस्तुत करेगा.
· राजा इस बात से चिंतित होकर सोचने लगे कि आखिर कौन इसके लिए आगे आएगा. तभी एक संत इस बलिदान के लिए आगे आया और कहा कि उसे पहाड़ी पर चलने दिया जाए और जहां वो रुके वहीं उसे मार दिया जाए और वहां एक देवी का मंदिर बनाया जाए.
· वो संत 36 किलोमीटर तक चलने के बाद रुक गये और उसका सिर धड़ से अलग कर दिया गया.
· जहां पर उसका सिर गिरा वहां मुख्य द्वार हनुमान पोल है और जहां पर उसका शरीर गिरा वहां दूसरा मुख्य द्वार है.
· महाराणा कुंभा के रियासत में कुल 84 किलेआते थे जिसमें से 32 किलों का नक्शा उसके द्वारा बनवाया गया था. कुंभलगढ़ भी उनमें से एक है.
· यह किला चारो तरफ से अरावली की पहाड़ियों की मजबूत ढल से सुरक्षित हे.
· यह किला 1914 मीटर की ऊंचाई पर क्रेस्ट शिखर पर बनाया गया हे.
कुम्भलगढ़ किले की संस्कृति:-
· राजस्थान पर्यटन विभाग हर साल महाराणा कुम्भा की याद में तीन दीन का एक विशाल महोत्सव का आयोजन कुम्भलगढ़ में करता है.
· तीन दिन के इस महोत्सव में किले को रौशनी से सजाया जाता है और इस दौरान नृत्य कला, संगीत कला का प्रदर्शन भी स्थानिक लोग करते है.
· इस महोत्सव में दूसरी बहुत सी प्रतियोगिताओ का भी आयोजन किया जाता है जैसे की किला भ्रमण, पगड़ी बांधना, युद्ध के लिये खिंचा तानी और मेहंदी मांडना इत्यादि.
आपको यह जानकारी कैसी लगी हमे कमेंट करके ज़रुर बताना.
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