What is the history of Voter INK? | Election के दौरान इस्तेमाल होने वाली स्याही के पीछे क्या कहानी हे?

What is the history of Voter INK? | Election के दौरान इस्तेमाल होने वाली स्याही के पीछे क्या कहानी हे?


What is the history of Voter INK? | Election के दौरान इस्तेमाल होने वाली स्याही के पीछे क्या कहानी हे?

दोस्तों, आजकल पुरे देश में Election का माहोल चल रहा हे. हमारे देश में साल भर में कई सारे Election होते हे. ज्यदातर लोग इसमें भाग भी लेते हे, और जो भी लोग वोट देने की लिए जाते हे उन सभी लोगो की ऊँगली पर INK लगाई जाती हे. इस बार चुनाव आयोग ने 26 लाखबोतल स्याही का ऑर्डर दिया है. लोकसभा चुनाव के लिए मतदान 11 अप्रैलसे शुरू होगया हे और यह चुनाव सात चरणों से गुजरते हुए 19 मईको पूरा होगा. 23 मईको वोटों की गिनती होगी.
अब सभी लोगो के मन में सवाल होता होगा की स्याही लगाने की जरुरत ही क्यों हे?, एसा क्यों किया जाता हे, और कब से यह INKलगाने की प्रथा शुरू हुई हे और क्यों इसको शुरू किया गया? ये सारी जानकारी आपको इस Post  में मिलजाएगी तो चलिए इसके बारे में बात करते हे.
आर्टिकल शुरू करने से पहेले जानते हे What is the history of Voter INK लेख में चर्चा होने वाले मुद्दे के बारे में.
Electionमें स्याही क्यों लगाई जाती हे.

सबसे पहेले स्याही लगाने की शुरुआत कब और कहा हुई
कहां बनती है ये स्याही
एक बोतल से कितने वोटरों पर निशान लगते हे.
क्या हे इस स्याही की विशेषता
कोनसे देशों में होता है इस्तमाल

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चलिए अब जानते हे ऊपर दिए गए सारे मुद्दों के बारे में विस्तार से.

Election में स्याही क्यों लगाई जाती हे:-
जेसे की हम सभी जानते हे की मत देने जाने वाले हर एक मतदार की उंगली पर श्याही लगाई जाती हे, यह नीली स्याई की चुनाव में बहोत ही अहम् भूमिका होती हे. यह स्याही चुनाव में भागीदारी का साबुत भी हे. यह स्याही का इस्तमाल फर्जी यानि की गलत तरीके से होने वाले मतदान को रोकने के लिये इस्तमाल किया जाता हे. इस स्याही का निशान करीब 20 दिन तक आपकी उंगली पर रहेता हे.

What is the history of Voter INK? | Election के दौरान इस्तेमाल होने वाली स्याही के पीछे क्या कहानी हे?


सबसे पहेले स्याही लगाने की शुरुआत कब और कहा हुई
सबसे पहले इस स्याही को मैसूर के महाराजा नालवाड़ी कृष्णराज वाडियार द्वारा स्थापित मैसूर लैक एंड पेंट्स लिमिटेड कंपनी दवारा सन 1937 में बनाया गया था. इसके बाद यह कंपनी भारत भर में प्रसिद्ध हो गई.

मैसूर पेंट्स एंड वार्निश लिमिटेड नाम की कर्णाटक की कंपनी इस स्याही का निर्माण करती है. यह कंपनी कर्णाटक सरकार की हे और पुरे देश में यही सरकार इस स्याही को पहोचाती हे. इस स्याही का निशान उंगली पर करीब एक महीने तक रहता है। मतदान में इस स्याही का पहली बार इस्तेमाल सन 1962 के आम चुनाव में हुआ था.

What is the history of Voter INK? | Election के दौरान इस्तेमाल होने वाली स्याही के पीछे क्या कहानी हे?

एक बोतल से कितने वोटरों पर निशान लगते हे

चुनाव आयोग से जुटाई गई जानकारी के अनुसार चुनाव में इस्तमाल होने वाली स्याही की एक बोतल 10 मिलीलीटरकी होती है और इससे करीब 350 वोटरोंपर निशान लगाया जा सकता हे. 2014 के चुनाव की तुलनामे इस साल 4.5 लाखज्यादा स्याही की बोतलें मंगाई गई हैं. 2009 में 12 करोड़रुपए की स्याही खरीदी गई थी. जिसके मुकाबले इस साल तीन गुना अधिक कीमत पर स्याही मंगवाई गई हे.

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क्या हे इस स्याही की विशेषता
इस स्याही को बहोत सारी विशेषताए हे. इस स्याही हो नेशनल फिजिकल लैबोरेटरी ऑफ इंडिया के केमिकल फोर्मुले द्वारा तैयार किया जाता है. इस स्याही को अगर आप सूर्य की रोशनी में ले जाते हो तो इसका रंग बदल जाता हे. इस स्याही में मुख्य रूप से सिल्वर नाइट्रेटका उपयोग किया जाता है और इसी वजह से यह स्याही जल्दी मिटती नहीं हे.

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कोनसे देशों में होता है इस्तमाल
ज्यादातर लोगो को एसा लगता होगा की सिर्फ भारत में ही इस स्याही का इस्तमाल होता हे लेकिन एसा नहीं हे. दक्षिण अफ्रीका, ब्रिटेन, कनाड़ा, डेनमार्क, सिंगापुर, नेपाल समेत कई देश भारत से बनी इस स्याही का प्रयोग करते हैं. इस लिए मालदीव, मलेशिया, कंबोडिया, अफगानिस्तान, मिस्र और दक्षिण अफ्रीका जेसे देशो में भारत इस स्याही का निकास करता हे.
तो दोस्तों अब आपको पता चल गया होगा की Election के वक्त स्याही का इस्तमाल क्यों किया जाता हे और क्यों इस स्याही मिटा नहीं सकते हे.

Election के दौरान इस्तेमाल होने वाली स्याही के पीछे क्या कहानी हे यह आर्टिकल आपको केसा लगा हमें कमेंट करके जरुर बताए. एसी ही जानकारी आपके Emailमें पाने के के लिए हमारे इस ब्लॉग को Subscribeजरुर करे. अगर आर्टिकल अच्छा लगा हो तो इसे अपने दोस्तों के साथ Social Mediaपर Shareकरे.

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