Biography of Arunima Sinha | कहानी उस “बहादुर लड़की” की जिन्होंने जिन्दगी को बोझ नहीं समजा

बहादुर लड़की “अरुणिमा सिन्हा” की साहस की कहानी

अरुणिमा सिन्हा भारत का एक एसा नाम है जिन्हें सायद ही कोई लोग नहीं जानते होगे. वो पहेले एक Volleyball खिलाडी थी लेकिन बाद में कुछ एसा हुआ की उनको अपना यह खेल हमेशा के लिए छोड़ना पड़ा. एक समय एसा आया था की उनके पास जिन्गदी और मौत दो ही रस्ते बचे थे लेकिन उन्होंने जिन्दगी को चुना और आगे बढ़ने का फैसला लिया.

चलिए जानते है Biography of Arunima Sinha आर्टिकल से की एसा क्या हुआ था उनके साथ की उनको फिर से जिन्दगी की नै शुरआत करनी पड़ी.

Biography of Arunima Sinha, बहादुर लड़की "अरुणिमा सिन्हा" की साहस की कहानी

1. अरुणिमा सिन्हा का जन्म 20 जुलाई 1988 में उत्तर प्रदेश में हुआ था.

2. जब वो तिन साल की थी तब उनके पिता की मृत्यु हो गई थी.

3. अरुणिमा को बचपन से ही स्पोर्ट्स में बहोत ही ज्यादा रूचि थी. और यही रूचि आगे चलकर उनको National Volleyball Team में ले गई. उनकी जिंदगी बहोत ही अच्छी तरह से चल रही थी.

4. जब सबकुछ अच्छा चल रहा था तब एक एसी घटना हुई जिसने अरुणिमा की पूरी जिन्दगी को बदल कर रख दिया.

11 अप्रेल 2011 की रात थी. वो सी.आई.एस.ऍफ़ की परीक्षा के लिए निकल पड़ी थी. इसके लिए उन्होंने लखनऊ से दिल्ली जाने के लिए पद्मावत एक्सप्रेस ट्रेन पकड़ी थी. रात के करीब 1 बजे थे तब कुछ मवाली लुटेरे लोग ट्रेन में चडे और सीधा अरुणिमा की और गए.

वो लोग अरुणिमा के गले से चेन छीन ने की कोशिश कर रहे थे और अरुणिमा उनका विरोध कर रही थी और इसी वजह से वो बदमासो ने उनको चलती ट्रेन से निचे फैंक दिया. अरुणिमा पटरी पर गिर गई और वो कुछ समजे उससे पहेले उनके पैरो पर से लगातार 49 ट्रेन चली गई.

5. उस रात वो 7 घंटे तक ट्रेन की पटरी पर पड़ी रही, वो बिलकुल भी हिल नहीं पा रही थी और इन 7 घंटो में 49 ट्रेन उनके ऊपर से गुजर चुकी थी. उनका बाया पैर शरीर से अलग हो चूका था. वो पूरी तरह से जख्मी हो चुकी थी. वो इतनी बेबस हो चुकी थी की हिल भी नहीं शक्ति थी. उनका बाया पैर पूरी तरह से कुचल चूका था.

6. एसी अवस्था में पूरा शरीर दर्द से कांप रहा था, मदद के लिए कोई भी आसपास मोजूद नहीं था, शरीर प्राण छोड़ने के लिए बेताब थे लेकिन दिमाग कहे रहा था की अभी जीना है. इसी तरह से पूरी रात निकल गई और दुसरे दिन सवेरे गाँव के लोग आए और उनको अस्पताल ले गए.

7. डॉक्टर ने उनको बचाने के ले तत्कालीन उनका पैर घुटने के निचे से काट दिया और बाद में उनको दिल्ही में मोजूद All India Institute of Medical science में लाया गया. वहा पर उनका 4 महीने तक इलाज हुआ.

8. क्यूंकि वो भारतीय टीम के लिए खेलती थी उसी वजह से भारतीय खेल मंत्रालय द्वारा उनको $3100 का मुवाजा दिया गया.

9. अब उनकी जिन्दगी पूरी तरह से बदल चुकी थी. वो चाहकर भी कुछ नहीं कर सकती थी लेकिन उन्होंने भारतीय क्रिकेटर युवराज सिंह से प्रेरित हो कर आगे बढ़ने का निश्चय किया. उन्होंने तय किया की वो साबित करेगी की वो बेबस अबला नारी नहीं है.

10. इसके बाद उन्होंने तय कीया की वो किसी पर भी बोज बनकर जीवन नहीं गुजरना चाहती है इसके लिए उनको कोई बड़ा काम करना था और उन्होंने तय की की वो दुनिया की सबसे ऊँची चोटी(ऊँचा शिखर) माउंट एवरेस्ट पर चड़ेगी.

11. जब उन्होंने यह बात की तब media, डॉक्टर और सभी लोगो ने उनका काफी मजाक उड़ाया. सभी लोग कहेने लगे की वो पागल हो गई है, चोंट की वजह से उनके दिमाग पर गेहरा असर पड़ा है इसी वजह से एसी बाते करती है. लेकिन उन्होंने अपना होंसला नहीं खोया और अपने निश्चय पर अडग रही.

12. उन्होंने माउंट एवरेस्ट पर चड़ने की तैयारी शुरू करदी, जब वो चोटी पर चढ़ रही थी तब उनका प्रोस्थेटिक पैर शरीर से अलग हो गया, ओक्सीजन भी खत्म हो गया लेकिन फिर भी हिम्मत नहीं हारी और may 2013 को दुनिया के लिए असम्भव लगने वाला कारनामा कर लिया. उन्होंने दुनिया की सबसे ऊँची चोटी पर विजय प्राप्त कर ली थी.

13. अरुणिमा सिन्हा माउंट एवरेस्ट पर चड़ने वाली पहेली विकलांग महिला बन गई. हेरानी की बात तो यह है की उनका एक पैर कुत्रिम है और दुसरे पैर में लोहे की रोड लगी हुई है और उनके स्पाइनल कोड में 2 फेक्चर थे.

14. माउंट एवरेस्ट पर विजय के बाद उन्हों ने कहा की ” इन्सान शरीर से विकलांग नहीं होता है बल्कि दिमाग से विकलांग होता है, असफलता तब नहीं होती है जब आप कोई काम करने में फ़ैल होजाते हो बल्कि असफलता तब आती है जब आपके पास कोई लक्ष्य नहीं होता है.”

15. इसके बाद उन्होंने तय किया की वो दुनिया की 7 सबसे ऊँची चोटी पर चड़ेगी जहा जाना बेहद ही मुस्किल होता है और हाल ही में अंटार्कटिका की विंसन मैसिफ पर्वत की 16000 फीट की ऊंचाई पर चड़कर अपना संकल्प पूरा किया.

16. अंटार्कटिका की विंसन मैसिफ पर्वत की 16000 फीट की चोटी पर चड़ने के लिए हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 12 अक्तूबर को तिरंगा दिया था और उन्होंने दुनिया की सबसे ऊँची चोटी पर अपना तिरंगा लहेराया और दुनिया में भारत का नाम रोशन किया. यहाँ पर चड़ने वाली वो दुनिया की पहेली विकलांग महिला बन गई.

17. अरुणिमा ने एवरेस्ट (29,035 फीट), किलिमंजरो, अफ्रिका (19,340 फीट), कोजीअस्को, ऑस्ट्रेलिया (7310 फीट), माउन्ट विंसन,अंटार्कटिका (16,050 फीट), एल्ब्रुज, यूरोप (18510 फीट), कास्टेन पिरामिड, इंडोनेसिया (16,024 फीट), माउंट अंककागुआ, दक्षिण अमेरिका (22837 फीट) जैसी चोंटी पर फ़तेह हांसिल की है.

18. दिसम्बर 2014 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उनकी किताब “born again on the Mountain” लौंच की. सन 2015 में अरुणिमा सिन्हा को भारत का चोथे सर्वोच्य नागरिक पुरस्कार पद्म श्री से सन्मानित किया गया.

दोस्तों, हम भी अपने जीवन को लक्ष्य देकर सच्ची महेनत और लगन से अपने तय किए गए लक्ष्य को हांसिल कर सकते है. अगर आपको Biography of Arunima Sinha आर्टिकल अच्छा लगा है तो इसको अपने सभी दोस्तों के साथ share जरुर करना.

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