Journey and Mystery of kohinoor diamond | कोहिनूर हीरे का रहस्य और सफ़र – जाने पूरी कहानी

कोहिनूर हीरे का पूरा इतिहास | Facts of  kohinoor diamond

कोहिनूर हीरे का रहस्य और सफ़र - जाने पूरी कहानी | Journey and Mystery of kohinoor diamond

Koh-i-noor यही शब्द थे नादिर शाह के जब उसने पहेली बार kohinoor diamond को देखा था और तभी से इस बेहद कीमती और खूब सूरत हीरे का नाम पड़ा kohinoor. kohinoor diamond का मतलब होता है “रौशनी का पहाड़” पर क्या सच में kohinoor diamond एक रौशनी का पहाड़ था? जिहा, दिखने में तो यह हिरा एक रौशनी का पहाड़ ही था लेकिन इसके व्यव्हार से यह हिरा अपने नाम से बिलकुल उल्टा यानि की अँधेरा का पहाड़ बना. आखिर kohinoor diamond में एसी कोनसी नकारात्मक बात थी की इसे पाने वाले लोग बर्बाद ही हो जाते थे. उनका जीवन अँधेरे में चला जाता था.

रौशनी के पहाड़ कहे जाने वाला यह kohinoor diamond कैसे किसी लोगो की बीमारी, नाश और अँधेरे का कारन बना? एसा क्या होता था की लोग इसके लिए लड़ पड़ते थे? आखिर यह चमकीला पत्थर अपने अन्दर एसा कोनसा रहस्य छुपा कर बैठा है की लोग इसके दुष्ट प्रभाव को जानने के बाद भी इसको पाने की चाह रखते थे. आज के इस आर्टिकल में हम जाने के Journey and Mystery of kohinoor diamond.

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कोहिनूर हीरे का रहस्य और सफ़र – जाने पूरी कहानी | Journey and Mystery of kohinoor diamond

कोहिनूर हीरे की कीमत
kohinoor diamond की सफ़र की शुरआत करने से पहेले जन लेते है इस बेहद कीमती हीरे की कीमत कितनी थी. बेहद कीमती होने के बावजूद भी यह बात हेरान करने वाली है की अपने इतिहास में kohinoor diamond एक लौता एसा हिरा है जो आज तक कभी भी नहीं बिका है. यह हिरा या तो एक राजा से दुसरे राजा को इनाम में मिला या इसको छीन लिया गया है. इसी तरह इस हीरे की कभी भी कीमत नहीं लगाई जा सकी है.

लेकिन कोहिनूर हीरे की कीमत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है की आज से करीब 60 साल पहेले में एक पिंक हिरा 46 मिलियन डॉलर में बिका था जबकि वो हिरा सिर्फ 24.78 कैरेट का ही था. जबकि वर्तमान कोहिनूर 105 कैरेट का है इस हिसाब से वर्तमान कोहिनूर की कीमत 150 हजार करोड़ रूपये हे. और इस हिसाब से अगर कोहिनूर का आकार कट नहीं किया गया होता तो इसकी कीमत कई हजार करोड़ होती. क्यंकि कोहिनूर का सही माप 793 कैरेट था.

कोहिनूर हीरे का सफ़र (Journey of kohinoor diamond)
माना जाता है की सन 1100 में आंध्रप्रदेश की गोलकुंडा की खुदाई में काम करते वक्त वहा के मजदूरो को एक बेहद चमकीला और बेहद सुन्दर हिरा मिला. इस हीरे की चमक बाकि अन्य हीरे से कई ज्यादा थी. उस वक्त इस हीरे का आकार एक छोटी गेंद जितना बड़ा था. किसीको भी नहीं पता था की यह चमकीला हिरा आगे चलकर एक इतिहास और अभिशाप बनने वाला है.

काकतीय राजवंश के पास था हिरा
कोहिनूर हीरे का इतिहास हमको मिलता है बाबर द्वरा लिखीत बाबर नामे में. जिसमे उन्होंने लिखा था की यह हिरा मालवा के राजाओ की संपति में सामिल था. जहा से यह हिरा काकतीय वंश के पास पहुंचा. यह हिरा काकतीय राज में कैसे आया इसके बारे में किसी को नहीं पता है लेकिन याह बात इतहास में मोजुद है की इस हीरे के पहोचने के सिर्फ 17 साल में ही काकतीय राजवंश पूरी तरह से नस्ट हो गया.

तुगलक वंश के पास पंहुचा
काकतीय वंश के बाद यह हिरा तुगलक वंश के पास पहुंचा. सन 1323 में तुगलक शाह प्रथम ने काकतीय वंश को एक युद्ध में समाप्त करके इस हीरे पर अपना कब्ज़ा जमा लिया. इसके बाद सन 1325 से 1351 तक यह हिरा मोहम्मद बिन तुगलक के पास रहा. और 16वि सताब्दी तक यह हिरा विभिन्न मुग़ल सुल्तानों के पास रहा.

इस हीरे ने अपना काम शुरू कर दिया था. इसमें इस हीरे के कारन पूरा तुर्की वंश समाप्त हो चूका था. जिसमे सबसे पहेला नाम था बाबर के बेटे हुमायु का. इस हीरे ने हुमायु का पूरा जीवन तहस महस कर दिया था. लेकिन अभी भी इस हीरे की लालच समाप्त नहीं हुई थी. इस हीरे को शाहजहाँ ने अपने मयूर सिहासन में जड़वा दिया. इसके बाद शाहजहाँ को उसके बेटे ने ही कैद कर लिया. इस तरह कोहिनूर का तांडव शुरू हो चूका था.

कोहिनूर हीरे की लालच में भारत के कई सारे राजवंश पूरी तरह नस्ट हो चुके थे. कई सारे राजाओ ने इस हीरे की लालच में अपना जीवन बर्बाद कर दिया था. अभी तक को सिर्फ भारत में ही तबाही मची हुई थी लेकी अब वो समय भी दूर नहीं था की जब यह हिरा भारत के बहार भी मौत का तांडव शुरू करने वाला था.

नादिरशाह ने कब्ज़ा कर लिया कोहिनूर पर
शाहजहाँ के पुत्र औरंगजैब ने कोहिनूर हीरे की लालच में अपने पिता की हत्या कर दी जिसके बाद वो खुद ही मोगलो का सम्राट बन गया. लेकिन उसको नहीं पता था की उसकी और तबाही आगे बढ़ रही है. सन 1739 में फारसी लुटेरा नादिरशाह भारत आया और मुग़ल सुल्तान पर आक्रमण कर दिया.  इस तरह नादिरशाह ने मुग़ल साम्राज्य को समाप्त कर दिया और अपने साथ वो मयूर सिहासन के साथ वो हिरा भी ले गया जिसका नाम उसने kohinoor  रखा था. इस तरह नादिरशाह कोहिनूर को अपने साथ फारस ले गया.

महाराणा रणजीत सिंह के पास पंहुचा
कोहिनूर पाने के 8 साल बाद ही सन 1847 में नादिरशाह के अपने लोगो ने ही नादिरशाह की बेहरमी से हत्या करदी गई. नादरी शाह की हत्या के बाद इसके वंशज कोहिनूर हिरा लेकर अफ्घानिस्थान भाग गए. इस तरह यह हिरा अफ़ग़ानिस्तानी राजा अहमद शाह दुर्रानी के पास पहुंचा. लेकिन इस हीरे को पाने के बाद अहमद शाह दुर्रानी की भी मौत हो गई और उसके बेटे शाहशुजा दुर्रानी ने कोहिनूर पर अपना कब्ज़ा जमा दिया. लेकिन इसके बाद शाहशुजा दुर्रानी कश्मीर में कैद हो गए और महाराणा रणजीत सिंह ने उसको आझाद करवाया जिसकी बदोलत वो हिरा उसने महाराणा रंजित सिंह को दे दिया.

इस तरह यह हिरा लाहोर के राजा रणजीतसिंह के पास पहुंचा. उस समय लाहोर हिंदुस्तान का हिस्सा हुआ करता था. इस तरह घुमते घूमते कोहिनूर हिरा वापस से हिंदुस्तान में आ पहुंचा.

Journey and Mystery of kohinoor diamond | कोहिनूर हीरे का रहस्य और सफ़र - जाने पूरी कहानी

ब्रिटिश साम्राज्य ने छीन लिया कोहिनूर
कोहिनूर हीरे को हड़पने के चक्कर में अंग्रेजो ने लाहोर पर आक्रमण कर दिया. इस युद्ध में भारत बहोत ही आशानी से जित सकता था लेकिन अंग्रेजो और सीखो के बिच चल रहे इस युद्ध के दौरान सेनापति का मोरचा सँभालने वाला सेनापति लालसिंह ने विश्वासघात किया और मोरचा छोड़कर लाहोर से भाग गया. जिसकी बदोलत सिख सेना को ब्रिटिश सेना से हर का स्वाद चखना पड़ा.

सन 1839 में महाराणा रणजीत सिंह की मृत्यु हो गई जिसके बाद कोहिनूर हिरा रणजीत सिंह के बेटे दिलीप सिंह के पास पहुंचा. लेकिन रणजीत सिंह की मृत्यु के बाद अंग्रेजो ने भारत पर कब्ज़ा करने का कार्य शुरू कर दिया था. सन 1849 में ब्रिटिशो ने दिलीप सिंह को हरा दिया और संधि करने के लिए उस समय के गवर्नर जनरल लॉर्ड डलहौजी के साथ समजोता किया जिस के मुताबिक कोहिनूर अब से भारत की नहीं बल्कि अंग्रेजो की सम्पति होगी.

इस तरह सन 1849 में यह हिरा ब्रिटिश ईस्ट इन्डिया कंपनी के हाथ लगा और सन 1850 में कोहिनूर हीरे को ब्रिटन की महारानी विक्टोरिया को सोंप दिया गया. महारानी विक्टोरिया ने सन 1852 में कोहिनूर हीरे को 105 कैरेट का बनवाकर अपने मुगुट का हिस्सा बना लिया. साथ ही यह बात भी कही की यह हिरा सदेव महिलाए ही धारण करेगी.

ब्रिटन में तबाही
भले ही ब्रिटिश लोग कोहिनूर को अपने पास ले गए लेकिन कोहिनूर हीरा पाने से पहले ब्रिटन दुनिया का सबसे शक्तिशाली देश था और सायद ही एसा कोई देश होगा जो अंग्रेजो का गुलाम नहीं बना होगा. यहाँ तक की अमेरिका भी ब्रिटन का गुलाम बन चूका है.

जबसे कोहिनूर हिरा ब्रिटन के पास पहुंचा इसके बाद ब्रिटन की हालत भी ख़राब होती गई. ब्रिटन के राज परिवार के लोग अकाल मृत्यु, क़त्ल या बदनामी के चलते मरने लगे थे. और धीरे धीरे जो ब्रिटन विश्व का सबसे शक्तिशाली देश था आज वो कई देशो से पीछे चला गया है. आज भी कोहिनूर हिरा ब्रिटन की महारानी के शिर का ताज बना हुआ है.

कोनसे देश कर रहा है कोहिनूर का दावा
सिर्फ भारत ही नहीं है है जो इस हीरे को अपनी संपति बता रहा है बल्कि पाकिस्तान, बंग्लादेश, अफ़ग़ानिस्तान, ईरान, अफ्रीका यह सभी देश कोहिनूर को अपनी संपति बता रहे है. सन 1976 में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो ने ब्रिटिश प्रधानमंत्री से कोहिनूर हिरा पाकिस्तान की संपति होने का दावा किया था जिसको ब्रिटिश ने ख़ारिज कर दिया था.

आजादी के 5 साल बाद यानि की सन 1953 में भारत ने भी ब्रिटिश से कोहिनूर की वापसी की मांग की थी जिसको ब्रिटिश ने अस्वीकार कर दिया था. वही पाकिस्तान का कहेना है की यह हिरा लाहोर से चोरी किया गया था इस लिए कोहिनूर हीरे पर भारत का हक़ नहीं है बल्कि पस्किस्तान का हक है.

खैर जो भी हो पर फ़िलहाल यह बात बिलकुल सच है की आज कोहिनूर हिरा ब्रिटन के पास है और वो किसी भी हालत में भारत या पाकिस्तान को यह हिरा वापिस देने के लिए राजी नहीं है. ब्रिटन क़ानूनी रूप से कोहिनूर को अपनी संपति बता रहा है.

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